Saturday, April 20, 2013

राजा की मंडी राजा के सांड़

उन दिनों छोटे इलाकेदार भी अपने इलाके के राजा हुआ करते थे। राजा यानी कि जो मर्जी हो सो करे, जो दिल में आए वो कहे। बस अपने ऊपर वाले महाराजा को नजराना देना पड़ता था। नजराना का तब भी वही मतलब था आज भी वही है। यानी कि आप कैसी भी उच्छिन्न करें ऊपर वाले को नजर नहीं आना है। एक दिन राजा के दिल में आया कि कुछ तूफानी किया जाए। तो उसने इलाके से एक जबरदस्त अन्डू सांड़ छंटवाया। सांड के पुट्ठे पर इलाके का राजचिन्ह दाग दिया। राजचिन्ह राजा का चलता-फिरता हुक्मनामा था। जहां जाए लोग रास्ता दे दें, डर के मारे। किसी को फुफकारे किसी को हुरपेटे किसी की क्या मजाल, सांड़ को डंडा मार सके। लोग यह मानने लगे कि सांड़ की आत्मा में राजा ही बसता है और सांड़ के रूप में राजा ही विचरता है। जब सांड़ का मन पड़े सब्जी मंडी में घुस जाए। पहली बार घुसा तो पूरी सब्जी मंडी को ही तहस-नहस कर दिया। जितना बन पड़ा उतना खाया जो बचा उस पर गोबर कर दिया। लोग किससे फरियाद करते, राजा का सांड था उस वक्त तो सांड़ ही राजा था। सांड़ इलाके में घूमने निकलता- लोग प्रेमपूर्वक उसे भोजन देते, वह घूरकर देखता, आगे बढ़ जाता। एक ठेलेवाले से एक बार चूक हो गई। उसने केले नहीं खिलाए तो सांड़ ने ठेला पलट दिया। सभी ठेले वालों को नसीहत मिल गई। अब जब वह कभी सब्जी मंडी घुसता तो दूकानदार पहले से ही हरी भाजी, ककड़ी-खीरा टोकनी में रख देते। सांड़ का जहां मन पड़ता वहां मुंह मारता। जहां इच्छा हुई गोबर कर दिया। 
राजा को लगा कि यह सांड़ कितने काम का है। मेरा फोकट का विज्ञापन हो जाता है। बिना पुलिस-फौज के मेरी दहशत बनाए रखता है। सो राजा ने सोचा कि अब एक सांड़ से काम नहीं चलने वाला, और न जाने कब वह बागी हो जाए इसलिए उसके कुछ एक विकल्प होने चाहिए। राजा ने रानी से सलाह ली। असल में इलाकेदारी की कमान परदे के पीछे रानी के हाथों में थी। सो रानी ने कहा ऐसा करिए- सभी महकमों के एक-एक सांड़ छोड़ दीजिए। वे अपने-अपने विभाग में मुंह मारे- गोबर करें और हमारी दहशत बनाए रखें, नाम रोशन करें। अब इलाके में कई तरह के सांड़ घूमने लगे। इस बार सबके पुट्ठे में राजचिन्ह दगा था साथ में उसकी सींगे रंग दी गईं थीं। रंगी हुई सींगों से पता चलता था कि यह सांड फला महकमे का है।
अखबारों ने सांड़ों पर टिप्पणियां करनी शुरू कर दीं। कौन सांड़ कितना बलिष्ठ है और अपने मोहकमें की खेती को कैसे चर रहा है। कुछ ने सांड़ों का वर्गीकरण भी कर दिया। ये राजनीतिक सांड़ है- ये प्रशासनिक सांड़ है, और ये आवारा लेकिन राजा के लिए काम के हैं। आवारा सांड़ों को छूट दी गई, कि वे माइनिंग-प्रापर्टी- कांस्ट्रक्शन महकमों में जाकर मनमाफिक चरें और हमारा नाम रोशन करें। सभी सांड़ अपने-अपने क्षेत्र में ईमानदारी से काम करने लगे। इलाके के राजा-रानी उनसे खुश थे। पर एक दिन गजब हो गया। जो सबसे सीनियर सांड़ था यानी कि राजचिन्ह के साथ इलाके में छोड़ा गया पहला सांड़, ने सोचा कि राजा की औकात ही क्या? उसके लिए इलाके में मैं दहशत फैलाता हूं और वह मेरी फैलाई हुई दहशत के आधार पर राज करता है। ये अब ज्यादा दिन नहीं चलने वाला। सांड़ ने सोचा कि यदि जंगल का राजा शेर हो सकता है, तो मैं इस इलाके का राजा क्यों नहीं? सांड़ ने इलाके में निकलना बन्द कर दिया, और राजा की कोठी के शानदार लान में जा बैठा। राजा-रानी के साथ शाम को टहलने निकला। सांड़ सींगें तानकर फुफकारता हुआ राजा-रानी की ओर घूरे जा रहा था। रानी सांड़ की नियति को ताड़ गई। वह पुचकारते हुए बोली धीरज रखो तुम्हें सभी सांड़ों का सरताज बना दिया जाएगा। फिर एक प्लान बना... और रातों-रात उस प्लान पर अमल हुआ। सुबह ड्योढीदारों ने देखा- सांड़ पस्त पड़ा था। बच्चे उसे पत्थर मारकर छेड़ रहे थे, वह चाहकर भी नहीं घूर पा रहा था। उसकी धारदार सींगे सिर का बोझ जैसी लगने लगीं थी। नथुनों से फुफकार नहीं निकल पा रही थी। एक उम्रदराज ड्योढ़ीदार ने कहा .. राजा-राजा होता है.. वो बड़े-बड़े अन्डुओं को यू हीं सड़ कर देता है .. आया समझ में।

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