Friday, April 19, 2013

इन्हें वोकल डायरिया है


लो ग पूछ रहे हैं अजीत पवार को कौन सी बीमारी हो गई है? मुंह से दुर्गन्धित शब्द निकल रहे हैं। कोई न कोई बीमारी तो है। बीमारियों का क्या? वे किसी को संक्रमित कर सकती हैं और कैसे भी हो सकती हैं। वैज्ञानिक हर साल कोई न कोई नई बीमारी खोज लाते हैं। एक दशक पहले एड्स का नाम सुना था। वैज्ञानिकों ने बताया कि यह रोग व्यभिचार की कोख से पैदा होता है। पहले-पहल येे बीमारी हॉलीवुड अभिनेता में खोजी गई थी। जैसे हॉलीवुड की फिल्में चोरी से बॉलीवुड आ जाती हैं वैसे ही चोरी-छुपे एड्स भी आ गया। यानी रोग की भी पाइरेसी। अजीत पवार मुंबई में रहते हैं। किसी भी रोग की ग्रहण क्षमता इस शहर में अद्भुत है। दंगा रोग भी यहीं सबसे पहले फैलता है।
एड्स के बाद और कोई नई बीमारी आई या नहीं डॉक्टरों को भले ही पता न हो, पर मुझे है। इस बीमारी का नाम है 'वोकल डायरियाÓ या 'माउथ डायरिया..Ó। इसे देसी जबान में 'मुंह पोकनाÓ रोग भी कह सकते हैं। इस रोग का लक्षण यह कि जिस तरह पेचिश से पहले आंत में मरोड़ होती है, पेट दर्द होता है.. फिर प्रेशर बनता है.. और आदमी बार-बार बाथरूम आता-जाता रहता है। उसी तरह इस रोग में भी जीभ में मरोड़ और ऐठन होने लगती है। पेचिश तब होती है जब आदमी संक्रमित भोज्य पदार्थ का भक्षण करता है और आंते उसे पचाने से मना कर देती हैं। ठीक उसी तरह जब हमारे नेता-अभिनेता कोई संक्रमित शब्द दिमाग में बैठा लेते हैं, व दिमाग उसे खपा नहीं पाता तो वह शब्द मुंह से पेचिश की भांति निकलता है। यही लक्षण शरद पवार के भतीजे मंत्री अजीत पवार में उभरा.. मुंह से दुर्गन्धित शब्द झर पड़े.. ''पानी नहीं है बांध में तो क्या पेशाब करके उसे भर दूं। अपने यहां इन दिनों वोकल डायरिया के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। जैसे कालरा और प्लेग के वायरस दूसरों को संक्रमित कर बीमार बना देते हैं वैसे ही इस रोग का वायरस! महाराष्ट्र बहुत पहले से ही वोकल डायरिया से संक्रमित प्रदेश रहा है। 'मातोश्रीÓ के दरबारहाल से इसकी परपराहट भरी ध्वनि सत्तर के दशक से ही आनी शुरू हो गई थी। बाल ठाकरे के मुंह से फुल प्रेशर के साथ दख्खिनियों के लिए ऐसे ही अल्फाज निकला करते थे। भतीजे ने भूगोल बदलते हुए उत्तरियों पर जब तब 'वोकल फारिगÓ करना जारी रखा है। नितिन गड़करी भी इसी संक्रमण में यदा-कदा फंस जाते हैं। 
'वोकल डायरियाÓ हाई प्रोफाइल रोग है। हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर की भांति ऊंची सोसायटी में पाया जाता है। इसलिए इसके सबसे ज्यादा लक्षण अपने दिग्विजय सिंह पर प्रकट होते हैं। क्योंकि वे सूबे के दस साल चीफ मिनिस्टर रहे और अब आला कमान के आला महासचिव हैं। कभी-कभी तो 'वोकल डायरियाÓ के इतने क्रॉनिक पेशेन्ट हो जाते हैं कि मुंह से आदरणीय हाफिज सईद साहब और माननीय ओसामा जी जैसे शब्द झरने लगते हैं। दिग्विजय सिंह को इस रोग का ब्रान्ड एम्बसडर भी माना जा सकता है। दिग्विजय सिंह ने यूपी को इस रोग से संक्रमित कर दिया। इसके पहले शिकार बेनी प्रसाद वर्मा उर्फ बेनीबाबू बन गए। इनके मुंह में भी जब चाहे तब प्रेशर बन जाता है और कुछ बोल-बाल के फारिग हो जाते हैं। बेनी बाबू ठहरे मुलायम सिंह के पुराने समाजवादी सखा - सो 'वोकल डायरियाÓ के वायरस से उनके कुनबे को संक्रमित कर आए। शिवपाल-रामगोपाल इन सबमें इस हाईप्रोफाइल रोग के कीटाणु पहुंच चुके हैं और जब चाहे तब प्रेशर बनाकर मुंह को गंदा करते रहते हैं। रही बात बहन मायावती की तो वे मनुवादियों के लिए शुरू से ही इस रोग की क्रानिक पेशेन्ट रही हैं और उन्हें इसका अफसोस भी नहीं। 
हार्टअटैक-ब्लडप्रेशर की भांति वोकल डायरिया कोई नेताओं की बपौती नहीं है। राजेन्द्र यादव जैसे साहित्यकार और महेश भट्ट-शाहरुख खान जैसे फिल्मी दुनिया के कलाकार भी इसी बीमारी से पीडि़त हैं। जब चाहे तब और जहां चाहे वहां ये 'वोकल फारिगÓ होते रहते हैं। 'वोकल डायरियाÓ के फायदे बड़े हैं। एक बार फारिग करो पूरा मीडिया लपक लेगा और आपकी एक फारिग को दिन-भर कई-कई बार दिखाएगा। हर्रा-फिटकरी के बिना आपके प्रचार का रंग चोखा बन जाएगा।
पागलों के लिए मेंटल हॉस्पिटल है, विकलांगों के लिए अलग चिकित्सालय, जितने मर्ज उतने क्लिनिक। समझ में नहीं आता कि 'वोकल डायरियाÓ के मरीजों के लिए मुफीद चिकित्सालय कहां हो सकता है। 
'आधुनिक भविष्य पुराणÓ के रचयिता आचार्य रामलोटन शास्त्री ने 'भविष्य के लोकतंत्रÓ नामक अध्याय में लिखा है कि - इसका कारगर इलाज जनता के ही पास है। पूछिए कैसे ... जैसे बजबजाती नालियों की दुर्गन्ध रोकने के लिए हम फिनाइल डालकर कीटाणुओं को मारते हैं उसी तरह यदि आप तक किसी नेता-अभिनेता के मुंह से निकली शाब्दिक दुर्गन्ध पहुंचे, तो आप भी जवाब में विवेक के फिनायल का प्रयोग करें। 
ये अजीत पवार- दिग्विजय सिंह- गडकरी- बेनीबाबू- महेश भट्ट आदि-आदि, जितने मरीज हैं इनका इलाज अस्पतालों में नहीं जनता के तिरस्कार में है। एक बार आजमाइए- ऐसे रोगियों की समूची प्रजाति अपने-अपने घरों में बैठ जाएगी- ढोर-डंगर की तरह। ऐसा हम नहीं आचार्य रामलोटन शास्त्री कहते हैं।

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