Saturday, November 26, 2011

कसाइयों के झुन्ड और एक बेचारी रत्नगर्भा


कभी-कभी कोई खास विशेषता ही जिन्दगी और वजूद की सबसे बड़ी दुश्मन बन जाती है। कस्त्ूारी मृग को ही ले लीजिए, यह प्रजाति अब लुप्तप्राय है। इसके उदर में पाई जाने वाली मूल्यवान कस्तूरी ही इसके वंशनाश का कारण बन गई। किवंदंतियों में मणिधर सांप के बारे में सुनते हैं। इस प्रजाति के लुप्त होने के पीछे भी निश्चित तौर पर वह मणि ही होगी जो उसकी विशेषता हुआ करती थी। हमारी धरतीमाता को भी रत्नगर्भा कहा जाता है। आज यह रत्न ही उसके वजूद पर संकट का कारण है। दक्षिण में बेल्लरी तो उत्तर में आरावली, पश्चिम में गोवा तो पूरब में ओडिसा, देश का ऐसा कोई प्रांत या जिला नहीं बचा है जहां खनिज माफिया न सक्रिय हो। बडेÞ-बडेÞ पंजों वाली जेसीबी और पोकलिन धरतीमाता की कोख को क्षत-विक्षत कर रही है। एक आंकलन के अनुसार देश में तीन चौथाई खदानें अवैध तरीके से चल रही हैं। प्रति दिन अरबों रुपयों का बहुमूल्य खनिज निकाला जा रहा है। अवैध को वैध बनाकर दूसरे देशों को निर्यात किया जा रहा है। खदानों की काली कमाई से रेड्डी बन्ध्ुाओं जैसे नवधनाढयों की नई जमात देश में उतरा रही है। हर प्रदेश, हर जिले और ताल्लुकों में रेड्डी बन्धुओं के बिरादरों की सल्तनत खड़ी हो रही है। इसी काली कमाई के धन का निवेश राजनीति में हो रहा है। मामला कुछ ऐसे हो गया है कि जो खदानों से कमा रहे हैं वे राजनीति में निवेश करके अपनी हैसियत सुनिश्चित करने में लगे हैं और जो राजनीति में जमें हैं वे अवैध खदानों में सत्ता की ताकत आजमा रहे हैं। इटली से उपजा माफिया शब्द सही मायनों में यहीं चरितार्थ हो रहा है।
     अपने विन्ध्य की धरती का भी रत्नगर्भा होना ही उसके अस्तित्व पर भारी पड़ रहा है। यहां तो जल-जंगल-जमीन, नदी पहाड़,Þ चौतरफा ही  खनिज कसाइयों का झुंड जेसीबी-पोकलिन और डंफर लिए रत्नगर्भा के पीछे हाथ धोकर पड़ा है। अवैध खदानों को लेकर हवस इस हद तक पहुंच चुकी है कि खुदा न खास्ता दुनिया के वैज्ञानिक महामशीन की तरह महाजेसीबी और महापोकलिन बना दें, जिसके पंजे, गांव के गांव और शहर के शहर एक साथ खोदने की क्षमता रखते हों, तो ये खनिज कसाई इसका भी उपयोग करने से न चूकें। सब कुछ  खन-खोदकर सीमेंट कारखानों के ग्राइंडर के पेट में झोंक दें। तुलसीदास के चित्रकूट चित चारु के सरभंग आश्रम के वनप्रांतर और पहाड़ को खोदकर हजम किए जा चुके हैं। जिस सिद्धा पहाड़ के बारे में वर्णन है कि यहां प्रभु श्रीराम ने निशचरहीन करंउ महि का प्रण किया था, उसे भी खनिज के लोभ में खोखला हो चुका है। यहां खनिज माफिया महज धरती भर ही नहीं खोदता, हमारे गौरवशाली इतिहास,पुरातात्विक विरासत और आस्थाओं की भी तिजारत करता है। इधर सतना से रीवा, सीधी और मैहर कैमोर तक सीमेंट कारखानों की श्रृंखला है। जितने अभी स्थपित हैं उतने ही पांच वर्षों के भीतर और खड़े होने जा रहे हैं। खनिजों की चोरी, लूटपाट और डकैती के प्रेरणा स्त्रोत यही हैं। इन्हें लाइम स्टोन चाहिए। यहां की धरती में लाइम स्टोन की इतनी प्रचुरता है कि कहीं भी दो कुदाल मारिए निकल आएगा। सरकार ने इन कारखानों को जायज तरीके से खदानों की लीज दे रखी है, पर नजायज खदानों से ही यदि कारखानों का पेट भरता है तो हर्ज ही क्या है। दुनिया के जितने भी विकसित देश हैं उन्होंने अपने यहां खदानों पर प्रतिबंध लगा रखा है। पर्यावरणीय कारणों से और भविष्य में बहुमूल्य खनिजों के संरक्षण की दृष्टि से भी। ये देश भारत और इन्डोनेशिया जैसे विकासशील देशों से खनिज पदार्थ आयात करते हैं। जैसे अपने कटनी, सिहोरा के आसपास पाया जाने वाला आयरन ओर का ब्लूडस्ट चीन और जापान जाता है जबकि यहां लौह अयस्क के विशाल भंडार हैं। वैज्ञानिकों ने इन्डोनेशिया के मौत की घोषणा कर दी है। खनिजों के अंधाधुंध दोहन ने वहां का पर्यावरण और परिस्थतिकी का सत्यानाश कर दिया है। सबसे ज्यादा प्राकृतिक आपदाएं इसी देश में आती हैं। अपने देश में भी जल जंगल और जमीन पर जिस तरह डकैती पड़ रही है, किसी दिन वैज्ञानिक भारत के मौत की भी घोषणा कर सकते हैं।
 विन्ध्य क्षेत्र के बिगड़ते पर्यावरण और परिस्थितिकी के संकेतों को समझिए। आंकड़े बताते हैं कि अपने सतना जिले में जनसंख्या की वृद्धि दर देश और प्रदेश की औसत वृद्धि दर से लगभग दो प्रतिशत कम है। यानी कि लोग यहां नहीं रहना चाहते। यहां पीने के पानी का संकट तो है ही सांस लेने वाली हवा में भी खतरनाक स्तर तक जहर घुल रहा है। पंद्रह साल पहले इंडिया टुडे में झुकेही के समीप एक विधवाओं के गांव की रपट छपी थी। रपट में बताया गया था कि चूना भट्ठों का धुआं आदमी की जिंदगी कोे कैसे लीलता है। कैमोर से लेकर सतना और इधर रीवा तक सीमेंट कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुआं, किश्तों में जिंदगियां छीन रहा है। धीमे जहर का असर लंबे समय के बाद सामने आता है। वैध-अवैध खदानों ने भूमिगत जल को सोख लिया है। पानी की आपूर्ति के लिए कारखानों के हजारों फिट गहरे पाताल तोड़ कु ओं ने जमीन को बंजर बनाना शुरू कर दिया है। क्या आपने ध्यान नहीं दिया कि सतना के आसपास हजारों की संख्या में आम के वृक्ष क्यों सूख रहे हैं।  वृक्षों में फल आना बंद हो रहा है। सिंगरौली देश के पांच सर्वाधिक   प्रदूषित क्षेत्रों में से एक चिन्हित किया गया है। अभी तो इस क्षेत्र में मुश्किल से पांच हजार मेगावाट ही बिजली बन रही है। पांच साल के भीतर जब यह उत्पादन बढ़कर पंद्रह हजार मेगावाट हो जाएगा तब प्रदूषण की क्या स्थिति होगी कल्पना कर सकते हैं। आने वाले दिनों में सिंगरौली से लेकर सतना तक थर्मल प्लांट और सीमेंट कारखानों की चिमनियां ही हमारे औद्योगिक विकास और सभ्यता की कहानी कहेंगी। इधर लाइमस्टोन व उधर कोयले के लोभ में रत्नगर्भा धरतीमाता का शीलहरण होता रहेगा। खनिज कसाइयों के झुंड के झुंड बेल्लारी के रेड्डी बन्धुओं की तरह राजनीति और भ्रष्टाचार की नित नई कहानियां गढ़ते रहेंगे। प्रकृति के साथ यह व्यभिचार कब तक सहा जाता रहेगा? आखिर कब तक?
राजा को प्रजा पर कैसे कर रोपण करना चाहिए, मनु-स्मृति में एक श्लोक है-
 यथाल्पाल्पदन्त्याद्यं वार्योवत्सषटपदा:।
 तथाल्पाल्पो ग्रहीतव्यो राष्टÑाद्रज्ञाब्दिक:कर:।।
यानी कि जिस प्रकार जोंक,बछड़ा और भौंरा अपने-अपने खाद्य रक्त, दूध और मधु-पराग को ग्रहण करता है उसी प्रकार प्रजा से उतना कर लेना चाहिए कि उसकी स्थिति पर कोई फर्क न पड़े। यही दृष्टांत प्रकृति के साथ भी अपनाया जाना चाहिए। दोहन और शोषण के बीच के फर्क को समझिए। खनिज के धंधे से जुड़े लोग भी हमारे अपने हैं, इसी विन्ध्य वसुन्धरा की संतान। उन्हें यह समझना होगा कि रत्नगर्भा धरतीमाता की इज्जत को क्षत-विक्षत किया तो  फल भी उन्हीं की आनेवाली पीढ़ी ही भोगेगी और प्रकृति का देवता उन्हें कभी क्षमा नहीं करेगा।

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